मंदिर भी मैं, मस्जिद भी मैं
थोड़ा हिंदू मैं और तोड़ा मुस्लिम भी मैं
हूँ शिया मैं, सुन्नी भी हूँ
हूँ ब्राहमीन मैं, शुद्रा भी हूँ.
कुंभ का नगा भी मैं और हज का हाजी भी मैं
क़व्वाल मैं अली का, और फिर नंद का लाल भी तो हूँ.
मथुरा के लाल मे मलांग हूँ मैं
खोज लेना जब खवजा के शहेर में हो.
क्या डालेगा मुझे एक डब्बे में तू,
क्या पहचानेगा मुझे एक ठप्पे में तू
नहीं मिलेगी मेरी पहचान एक ज़ात मे यू
मैं तो दिन हूँ और फिर रात भी तो हूँ.
थोड़ा हिंदू मैं और तोड़ा मुस्लिम भी मैं
हूँ शिया मैं, सुन्नी भी हूँ
हूँ ब्राहमीन मैं, शुद्रा भी हूँ.
कुंभ का नगा भी मैं और हज का हाजी भी मैं
क़व्वाल मैं अली का, और फिर नंद का लाल भी तो हूँ.
मथुरा के लाल मे मलांग हूँ मैं
खोज लेना जब खवजा के शहेर में हो.
क्या डालेगा मुझे एक डब्बे में तू,
क्या पहचानेगा मुझे एक ठप्पे में तू
नहीं मिलेगी मेरी पहचान एक ज़ात मे यू
मैं तो दिन हूँ और फिर रात भी तो हूँ.
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